We Report To You

नए साल पर हेल्थ का ख्याल रखिये, ऐसे कीजिये आँख और कान की देखभाल

0 513

- Advertisement -

नया साल हमारे लिए हर्षोल्लास का तो मौका होता ही है। यह समय बदलाव का भी होता है। न सिर्फ वर्ष या तारीख का, बल्कि जिंदगी में नये फैसले लेने का भी। तभी तो साल शुरू होने से पहले ही हम अपने-अपने न्यू इयर रिजोल्यूशन लेते हैं। इसलिए हमारे विशेषज्ञ बता रहे हैं कुछ आसान उपाय जो आपके आँख और कान को हेल्दी और फिट रखेंगे।

आंखों की देखभाल

डॉ राजीव रंजन,
नेत्र रोग विशेषज्ञ, रांची

  • आंखों की साफ-सफाई, हाइजीन और समय-समय पर उसकी जांच जरूरी है। आजकल के काजल में मिलावट हो सकती है। इसलिए छोटे बच्चों को काजल न लगाएं। इससे आंखों में एलर्जी हो सकती है।
  • एक साल से कम उम्र के बच्चों में आंखों से पानी गिरने की समस्या देखी जाती है, उसके लिए ‘सैक मसाज’ की जरूरत होती है।
  • बच्चों को ‘विटामिन ए’ से भरपूर खाद्य पदार्थ प्रचुर मात्रा में दें जैसे- गाजर, टमाटर, पपीता, दूध, मछली और हरी पत्तेदार सब्जियां। बच्चों में एलर्जी की आशंका अधिक होती है। वे लाख समझाने के बाद भी दूसरे बच्चों से मिलते-जुलते हैं, इसलिए यदि वे संक्रमित बच्चे के संपर्क में आयेंगे, तो उनकी आंखों में भी संक्रमण हो सकता है। साथ ही धूल, मिट्टी और धुआं आदि से भी उनकी आंखों में परेशानी हो सकती है। इसलिए ऐसा कुछ होने पर तुरंत चिकित्सक से सलाह लें।
  • साल में एक बार कम-से-कम बच्चों और वयस्कों को भी विजन टेस्ट जरूर करानी चाहिए। कॉस्मेटिक्स का प्रयोग कम करना चाहिए। अगर चश्मे की जरूरत हो और पावर ज्यादा है, तो चश्मे का नियमित प्रयोग करें, नही तो आंखें अधिक कमजोर हो जायेंगी।
  • कई बार एक आंख तिरछी भी हो सकती है। 40 की उम्र के बाद मोतियाबिंद, ग्लूकोमा, डायबिटीज, ब्लडप्रेशर एवं एएमडी के कारण परेशानी हो सकती है। उम्र ज्यादा होने पर नजदीक की छोटी चीजें कम दिखने लगती हैं जैसे-अखबार पढ़ना, सूई में धागा डालना। इसके लिए सही पावर का चश्मा लगाएं। मोतियाबिंद को पकने का इंतजार कभी न करें। पहले ही ऑपरेशन करवा लें।
कानों की देखभाल

डॉ हर्ष कुमार, (इएनटी) पॉपुलर नर्सिंग होम, रांची

कान, नाक एवं गले की कई ऐसी बीमारियां हैं, जो समय पर ध्यान न दिये जाने से गंभीर रूप ले सकती हैं। आमतौर पर बच्चों में कान बहने या मवाद निकलने कि समस्या बहुत आम है। इसका प्रमुख कारण है, बच्चों को सुला कर या लेटाकर दूध पिलाना। दूध कान के पर्दे के पीछे जाकर जम जाता है तथा इससे इन्फेक्शन हो जाता है। इस इन्फेक्शन का समय पर इलाज नहीं कराने से कान का पर्दा फट सकता है।

कान में तेल डालना खतरनाक

कई बार माएं बच्चों के कान में सरसों का तेल या अन्य ठंडक पहुंचानेवाली तेल डाल देती हैं। इससे कान में फफूंदी अथवा फंगस जम जाता है। कई बार घरेलू नुसखों द्वारा कान के रोगियों की ठीक करने की कोशिश की जाती है, जैसे- गेंदे के फूल का रस, प्याज का रस आदि। इन सभी उपचारों से कान की समस्याएं और भी गंभीर हो जाती हैं। कान का मवाद कई बार मस्तिष्क में चला जाता है और ब्रेन अथवा दिमागी बुखार हो जाता है।
नाक से रक्त आना एक आम बीमारी है। इसके प्रमुख कारण हैं अधिक गर्मी अथवा अधिक ठंड। रक्तचाप बढ़ने से भी नाक से ब्लीडिंग हो सकती है। अगर नाक से रक्त आ रहा हो, तो बर्फ से सेंके तथा नाक पर प्रेशर दें। नाक में सूखा गोबर अथवा मिट्टी न डालें। चूना का भी प्रयोग न करें।

बरतें ये सावधानियां :

  • कान को पिन, लकड़ी, चाबी, पंख आदि से न साफ करें।
  • सरसों या अन्य तेल कान में न करें।
  • पान, बीड़ी का सेवन न करें। इससे मुंह, जीभ या गले का कैंसर हो सकता है।
  • बच्चों को मोती, सिक्का आदि खेलने के लिए न दे। मोती, मटर यदि किसी कारण से कान, नाक या गले में फंस    जाये, तो तुरंत चिकित्सक से मिलें।
  • वर्ष में एक बार इएनटी डॉक्टर से जरूर मिलें।

- Advertisement -

Leave A Reply

Your email address will not be published.