जिन आर्थिक नीतियों और निरंकुश शासन प्रणाली के कारण श्रीलंका में विद्रोह हो रहा है उससे भारत को सबक लेने की जरूरत है। जनता सरकार के राष्ट्रवाद के नारे पर तब तक ही साथ रहती है जब तक जनता का ध्यान पेट के भूख पर नहीं जाता । शायद यही वजह है कि वही जनता जो कुछ समय पहले तक राजपक्षे के समर्थन में नारे लगा रही थी आज वही जनता राजपक्षे और उनके परिवार के सदस्यों के खिलाफ नारे लगा रही है।
भारत में भले ही राष्ट्रवाद का आइना दिखाकर राजनीतिक दल राजनीति कर रहे हैं। लेकिन आम जनता महंगाई , बेरोजगारी , भ्रष्टाचार और गरीबी के दंश से त्राहिमाम कर रही है । जनता की समस्याओं को दरकिनार कर सरकार धर्म संप्रदाय के मुद्दे पर फोकस रहती है। आज हालत इतने विभत्स हो चुके है कि गरीब और गरीब हुआ जा रहा है। बेरोजगार आत्महत्या करने को मजबूर है। किसान दो जून की रोटी के लिए तरस रहे हैं। स्वास्थ्य व्यवस्था बदहाल है ।
भारत के आज के जो हालत है। जिस तरह विदेशी कर्ज के बोझ तले भारत दबा हुआ है । बेलगाम महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार आम जनता की कमर तोड़ रही है। इससे जल्द से जल्द देश को उबारा नहीं गया तो श्रीलंका जैसे हालात हमारे देश में भी पैदा हो सकते हैं। गौरतलब है कि श्रीलंका में जो कुछ हो रहा है, उससे भारत को भी सबक सीखने की जरूरत है, जो आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपैया वाली कहावत चरितार्थ कर रहे हैं।