Exclusive:केन्द्रीय विद्यालय अधिकारी का तुगलकी फरमान जिसने केवी में मचाया हड़कंप
अभय पाण्डेय/कोलकत्ता: देश में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए केन्द्रीय विद्यालय का कोई सानी नहीं। केंद्र सरकार के अधीन चलने वाले इन विद्यालयों में कम खर्चे में सर्वोत्तम शिक्षा के साथ-साथ छात्रों के सर्वांगीण विकास का पूरा-पूरा ख़याल रखा जाता है। एक बार किसी छात्र का दाखिला इसमें हो गया तो पहली श्रेणी से लेकर बारहवीं तक अपने बच्चों की बेहतर शिक्षा के लिए अभिभावकों को कोई चिंता नहीं रहती। शायद यही वजह है कि हर अभिभावक चाहे वो किसी भी तबके का हो चाहता है कि उसके बच्चों की पढ़ाई केन्द्रीय विद्यालय में हो। ये बात अलग है की इस विद्यालय में दाखिले की प्रक्रिया सबके लिए सहज नहीं होती लिहाजा कई बार तो बच्चों को दाखिला दिलाने के लिए अभिभावकों को अपनी एड़िया तक घिसने के बाद भी कामयाबी नहीं मिल पाती। लेकिन केन्द्रीय विद्यालय कोलकत्ता रीजन के एक कथित आधिकारिक तुगलकी फरमान ने तो जैसे इसके वजूद पर सवालिया निशान हीं लगा दिया है।
दरअसल तारीख 11/12/2017 को ईमेल acadrokolkata@gmail.com से केन्द्रीय विद्यालय संगठन कलकत्ता संभाग की सहायक आयुक्त संगीता राय की तरफ से विद्यालयों के लिए एक चिट्ठी निर्गत की गई है। चिट्ठी में अधीनस्थ विद्यालयों के लिए कुछ आदेश दिए गए हैं, जिनमें से दो आदेश ऐसे हैं जो किसी के गले नहीं उतर रहे। जहां एक आदेश जो चिट्ठी में तीसरे नंबर पर है, लिखा गया है कि विद्यालय के सभी संसाधनों का लाभ केवल कक्षा 10वीं एवं 12 वीं के छात्रों के लिए हैं नीचे की कक्षाओं के लिए नहीं। अतः सभी संसाधनों को इन्ही दो कक्षाओं पर केन्द्रित कीया जाय। अब सवाल उठता है कि 10 वीं से निचे के बच्चों क्या होगा, क्या नींव को कमजोर हीं छोड़ दिया जाए? वहीं दूसरे आदेश के मुताबिक़ जो चिट्ठी में पांचवे नंबर पर है, कहा गया है कि शिक्षकों द्वारा किसी भी भाषा का प्रयोग किया जा सकता है, चाहे वह अमार्यादित हीं क्यों न हो। साथ हीं स्थितियों को देखते हुए किसी भी तरह संतुलन बनाने जोर दिया गया है।
अब इस बेतुके और तुगलकी फरमान के बाद शिक्षकों, छात्रों और अभिभावकों के बीच हडकंप मच गया है। आदेश को लेकर जहां छात्र और अभिभावक निराश और परेशान हैं, वहीँ शिक्षकों के अन्दर बेहद नाराजगी का माहौल है। इस आदेश के विरोध में ऑल इंडिया केंद्रीय विद्यालय टीचर्स एसोसिएशन ने आयुक्त को एक पत्र भी लिखा है। पत्र में सहायक आयुक्त द्वारा जारी किये गए आदेश का जिक्र करते हुए इसकी भाषा एवं शब्दावली को पद की गरिमा के विपरीत बताया गया है। साथ हीं सहायक आयुक्त के इस तानाशाही सोच और अमानावीयपूर्ण व्यवहार की जाँच कर उचित कारवाई की भी मांग की गई है।
इससे पहले कि मामला तुल पकड़ता उसकी गंभीरता को समझते हुए उपायुक्त केन्द्रीय विद्यालय संगठन कोलकत्ता संभाग की ओर से जल्द हीं एक दूसरी चिट्ठी निर्गत कर दी गई। जिसमें सहायक आयुक्त का पक्ष रखते हुए पहले वाली चिठ्ठी को फर्जी करार दिया गया है और कहा है कि 11/12/2017 को निर्गत की गयी चिट्ठी आधिकारिक नहीं है और भ्रम फैलाने के लिए किसी अन्य द्वारा ऑफिसियल मेल को हैक कर प्रेषित की गई है।
पहले सहायक आयुक्त के मेल से तुगलकी फरमान जारी कर हडकंप मचा दिया जाता है और उसके बाद उसकी गंभीरता को देखते हुए संभाग के उपायुक्त की तरफ से एक अन्य चिठ्ठी जारी कर कहा जाता है कि पहली चिट्ठी फर्जी है। खैर जो भी हो मामला बड़ा है, जो बस इतना कह देने भर से ख़त्म नहीं हो जाता की चिट्ठी फर्जी है। क्योंकि चिट्ठी आधिकारिक मेल से जारी की गई है, जिससे कई सवाल खड़े होते हैं। पहला सवाल कि अगर विवादित चिट्ठी सहायक आयुक्त की तरफ से नहीं भेजी गई तो आखिर वो कौन था जो उस ईमेल को हैंडल कर रहा था, आखिर क्यों उसने इस तरह का बेतुका फरमान जारी किया,इसके पीछे उसकी मनसा क्या थी? और दूसरा सवाल कि उस चिट्ठी को फर्जी घोषित कर देने भर से जवाबदेही ख़त्म हो गई या आगे गंभीरता पूर्वक मामले की तफ्तीस होगी?