स्वच्छता का धर्म अपनाकर ही श्रेष्ठ राष्ट्र का निर्माण किया जा सकता है – शिवओम मिश्रा
व्यक्ति को जीवन में स्वच्छता अपनानी चाहिए और अन्य लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करना चाहिए। स्वच्छता के मार्ग पर चल कर ही विश्व बंधुत्व के सपनों को साकार किया जा सकता है। क्योंकि विश्व बंधुत्व वैश्विक सामंजस्य का ही पर्याय है।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का विश्वास था कि नैतिक मूल्य और स्वच्छता ही राष्ट्रवाद की नींव है। आज भारत में जिस तरह से राष्ट्रवाद को लेकर जांबाज़ बयानबाज़ी करते रहते हैं तो क्या उनसे राष्ट्र निर्माण में रत्ती भर की भी सहयोग की अपेक्षा की जा सकती है? बल्कि अगर धर्म समुदाय से परे हटकर, जात-पात-रंग-रूप का भेद मिटाकर, एक दूजे के सहयोग से अपने आसपास साफ सफाई रखेंगे तो भारत देश पुनर्निर्माण की ओर अग्रसर होगा।
गाँव-गांव, शहर- शहर में कल कारखानों और कंक्रीट का जाल बिछ रहा है और इन सब के बीच प्रगति के कैनवास पर स्वच्छ भारत का सपना भी अपना आकार ले रहा है। लेकिन, अस्वच्छ और दुर्गंध पूर्ण वातावरण अच्छे से अच्छे विकास के पहिए को पंचर कर सकता है।
चूंकि, पवित्रता और साफ-सफाई एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। मगर यह तभी मुमकिन है, जब इसमें समाज का हर सदस्य सहयोग दे। स्वस्थ जीवन जीने के लिए स्वच्छता का विशेष महत्व है। स्वच्छता अपनाने से व्यक्ति रोगमुक्त रहता है और एक स्वस्थ राष्ट्र निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है। अत: हर व्यक्ति को जीवन में स्वच्छता अपनानी चाहिए और अन्य लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करना चाहिए। स्वच्छता के मार्ग पर चल कर ही विश्व बंधुत्व के सपनों को साकार किया जा सकता है। क्योंकि विश्व बंधुत्व वैश्विक सामंजस्य का ही पर्याय है।