60 के बाद भी बने रहेंगे युवा,अगर मानेंगे ये बातें
वृद्धावस्था में सही सेहत हमारे हाथ में है। यह अवस्था प्रकृति का नियम है और सभी को इस अवस्था से गुजरना होता है। कई बार बुजुर्ग इसे स्वीकार नहीं करना चाहते। इस अवस्था में यदि आपको जीने की कला आ जाये, तो यह अभिशाप नहीं वरदान साबित हो सकता है। इस अवस्था तक अपने स्वास्थ्य और अपनी शारीरिक व मानसिक क्षमताओं को बनाये रखना एक हद तक हमारे अपने हाथ में है।
उम्र के बढ़ते ही यह सोच लेना कि बूढ़े हो गये जैसे विचारों से उत्साह खत्म हो जाता है। थकान हर वक्त मन और शरीर पर भारी पड़ने लगता है। मामूली सी तकलीफ यातनामय रोग लगने लगती है हर वक्त रोग का रोना शुरू हो जाता है। उत्साह, आनंद, लक्ष्य, ऊर्जा, स्फूर्ति खत्म होने लगती है। एक सेमिनार में मुख्य अतिथि डॉक्टर जो काफी विख्यात थे से किसी ने पूछा कि सर आपकी उम्र क्या होगी, तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहां 74 साल। सभी आश्चर्य चकित थे क्योंकि देखने से वे 50 वर्ष से अधिक के नहीं लग रहे थे। उन्होंने ने कहा कि उम्र क्या छिपाना, इसी ने तो उन्हें अनुभव एवं ज्ञान दिया है। तभी तो आप सब मुझे इतना मान-सम्मान दे रहे हैं। ऐसे लोग जो हमेशा सकारात्मक सोच एवं ऊर्जा से भरे होते है वे हर उम्र को जिंदादिली से जी पाते है और मानसिक बीमारी उनसे कोसों दूर रहती है। सच मानें, तो इस उम्र में कमाल का अनुभव होता है, जिससे खुद को आत्मविश्वास से लबालब पाते है।

हां यह भी सच है कि उम्र बढ़ने पर शरीर की हड्डियां कमजोर पड़ने लगती हैं। आंखों की रोशनी कम होने लगती है। आर्थिक आमदनी भी कम हो जाती है। वृद्धावस्था को लेकर कई पूर्वाग्रह भी मन में पनपने लगते हैं जैसे लैंगिक अभिरुचि में कमी बौद्धिक क्षमताओं का ह्रास। हां, थोड़ी-बहुत श्रवण में कमी, दृष्टि एवं स्वाद एवं शारीरिक में थोड़ी कमी का आना स्वाभाविक है, परंतु यह भी व्यक्ति के खुद के व्यक्तित्व पर निर्भर करता है कि वह इसका किस तरह समायोजन कर पाता है। कई बुर्जुर्गों में यह देखा कि जो व्यक्ति खुद को हमेशा सकारात्मक विचारों से अपटूडेट रखते हैं, अपने रहन-सहन और पहनावे को महत्व देते हैं, सामाजिक कार्यों में रुचि लेते थे, पत्नी के साथ मित्रवत व्यवहार रखते हैं, वैसे लोग वृद्धावस्था में भी शरीर एवं मानसिक रूप से स्वस्थ हैं। लेकिन जो व्यक्ति खुद को नशे के सेवन, दवाइयों की आदत, अनियमित दिनचर्या एवं हर समय एक दूसरे के प्रति नकारात्मक नजरिया रखते थे एवं अस्त-व्यस्त जीवनशैली अपनाएं रहे वे उम्र के पहले ही वृद्ध दिखने लगे साथ ही अनेक शारीरिक मानसिक बीमारियों जैसे मोटापा, शुगर, ब्लड प्रेशर, हड्डियों की बीमारियों, चिड़चिड़ापन आक्रोश, स्मृति लोच के शिकार जल्द होने लगे। जिसे हम बुढ़ापे में सठियाना भी कह सकते हैं, जिसमें व्यक्ति का बौद्धिक क्षमता, सामाजिक एवं व्यावसायिक कार्य दोषपूर्ण होने लगता है।
सहनशील होने लगती हैं महिलाएं, पुरुष हो जाते हैं आवेगी
महिलाएं पुरुषों के मुकाबले उम्र बढ़ने पर ज्यादा सहनशील होने लगती है, जबकि पुरुष सख्त एवं आवेगी हो जाते हैं। देखा गया कि अनियमित जीवनशैली सेहत की प्रति लापरवाही, छोटी-छोटी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को नजरअंदाज करने की प्रवृत्ति आगे चल कर वृद्धावस्था को समस्याओं को बढ़ावा देते हैं। कई बुजुर्गों को कहते सुना गया है कि हम बीमार क्या पड़ेंगे बुढ़ापा ही हमारी बीमारी है इस नकारात्मक नजरिये का परिणाम तो नकारात्मक ही दिखेगा न? यदि वृद्धावस्था में हमें शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ रहना है, तो पहले खुद को वृद्धावस्था की कमजोरी के पूर्वाग्रह से निकाल अपने विचार एवं सेहत के प्रति सजग बने। उम्र बढ़ने के साथ छोटी-छोटी स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं को बिल्कुल नजरअंदाज ना करें। समय-समय पर अपने स्वास्थ्य की जांच कराते रहें।
नियमित स्वास्थ्य जांच कराते रहें
बराबर जांच कराते रहने से गंभीर बीमारियों का शुरुआत में पता चल जाता है और उस का इलाज संभव हो सकता है। आज का चिकित्सा विज्ञान इस तथ्य को बार-बार स्वीकार कर रहा है कि हम सही आैर संतुलित आहार द्वारा अपने शरीर आवश्यक तत्व प्रदान कर शारीरिक स्वस्थ रह सकते है एवं चिकित्सा मनोविज्ञान कहता है हम अच्छा सोच रखे एवं खुद से प्यार करना सीखे ताकि आत्मबल एवं आत्मविश्वास बना रहें हताशा, दुख जैसे विचार से खुद को अलग रखें।
उम्र दराज होने या वृद्धावस्था को सोच कर अपने कार्य क्षमता को कम ना करें खुद को जितना जिंदादिल बनाकर रखेंगे मानसिक परेशानी उतनी ही दूर रहेगी। नियमित सैर, व्यायाम उचित दिनचर्या एवं सही खान-पान की आदत बनाये रखें मतिभ्रम और सठियापन आपसे दूर रहेगा। लोग कहने को विवश हो जायेंगे कि 60 का युवा है।
–आलेख मनोचिकित्सक डॉ बिंदा सिंह से बातचीत पर आधारित