हर तरह खतरनाक है महिलाओं का ‘खतना’
– डॉ रागिनी ज्योति से बातचीत
इंटरनेशनल डे ऑफ जीरो टॉलरेंस फॉर फिमेल जेनिटल म्यूटिलेशन
फिमेल जेनिटल म्यूटिलेशन की प्रथा एशिया और अफ्रीका के 30 देशों में है और मौजूदा समय में विश्व में 20 करोड़ से ज्यादा किशोरियां जेनिटल म्यूटिलेशन की शिकार हैं। आम तौर पर महिलाओं का जेनिटल म्यूटिलेशन करते समय उन्हें बेहोश या प्रभावित इलाके को सुन्न भी नहीं किया जाता और न ही कोई डॉक्टर वहां मौजूद होता है।
क्या है जेनिटल म्यूटिलेशन
महिलाओं का जेनिटल म्यूटिलेशन करते समय उनकी योनि के बाहरी हिस्से (क्लाइटॉरिस) को आंशिक या पूरी तरह काट दिया जाता है। अलग-अलग देशों में इसके अलग-अलग तरीके हैं, पर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चार तरह के म्यूटिलेशन के बारे में बताया है। साथ ही सभी को खतरनाक और जानलेवा भी बताया गया है।
Related Posts
ये भी पढ़ें : https://www.infolism.com/stop-brutal-practice-on-young-girls/
कोई लाभ नहीं, सिर्फ नुकसान
डब्ल्यूएचओ के अनुसार जेनिटल म्यूटिलेशन से महिलाओं को दो तरह के दुष्परिणाम का सामना करना पड़ता है। एक तुरंत होने वाले नुकसान और दूसरा लंबे समय तक बने रहने वाला नुकसान। इससे महिलाओं को ब्लीडिंग, बुखार, संक्रमण, सदमा जैसी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। एक ही रेजर से कई महिलाओं का खतना होने से उन्हें योनी संक्रमण के अलावा बांझपन और एचआइवी एड्स जैसी बीमारियाें का खतरा होता है। खतने के दौरान ज्यादा खून बहने से बच्ची की मौत भी हो जाती है। दर्द सहन न कर पाने और शॉक के कारण कई बच्चियां कोमा में भी चली जाती हैं। इसके अलावा दूरगामी प्रभाव में उन्हें न सिर्फ सेक्सुअल इंटरकोर्स में तकलीफ होती है, बल्कि उनके मां बनने की क्षमता भी खत्म हो सकती है। वह पोस्ट ट्रॉमेंटिक डिसऑर्डर, डिप्रेशन आदि की शिकार भी हो सकती है।
तथ्य : आंकड़ों के मुताबिक देश में पिछले दो सालों में जिन लड़कियों की जेनिटल म्यूटिलेशन के दौरान हुई समस्याओं के लिए इलाज किया गया, उनमें सबसे कम उम्र की लड़की सात साल की थी। बाल अधिकारों के लिए काम करनेवाली संस्था एनएसपीसीसी के मुताबिक विशेषज्ञ डॉक्टरों ने इस दौरान करीब 1700 महिलाओं और लड़कियों का जेनिटल म्यूटिलेशन से हुई विकृतियों का इलाज किया। कुछ अफ्रीकी, मध्य पूर्वी और एशियाई देशों में जेनिटल म्यूटिलेशन की प्रथा है। एनएसपीसीसी ने ब्रिटेन में इस बारे में लड़कियों के जागरूक बनाने के लिए एक हेल्पलाइन भी शुरू की है।
बस अंधविश्वास की प्रथा
इसके बारे में डब्ल्यूएचओ ने जो कारण बताएं हैं, उसके अनुसार जेनिटल म्यूटिलेशन का कोई खास कारण नहीं है। जिन समुदायों में यह प्रथा है, वे इसके पीछे का कारण तो नहीं बता पाते, पर उसे जारी रखना चाहते हैं ताकि उनको समुदाय सेे बाहर न निकाला जाये, साथ ही किसी दैविक शक्ति के प्रकोप का भाजन न होना पड़े। यानी इसका सीधा मतलब ये कि आज भी उन इलाकों और समुदाय में शिक्षा की कमी है और वे अंधविश्वास के कारण इसे निभाते आ रहे हैं। इसलिए यदि आपको अपने आस-पास में कभी भी इस तरह के मामले का पता चले, तो उसका विरोध करें और उस बच्ची की जान बचाने में मदद करें।
किन देशों में ज्यादा प्रचलन
महिलाओं में जेनिटल म्यूटिलेशन का सर्वाधिक प्रचलन अफ्रीकी देशों में है। अफ्रीकी देशों में इसके प्रचलन से विश्व समुदाय और विश्व स्वास्थ्य संगठन का इस पर ध्यान गया। भारत में भी बोहरा समेत अन्य समुदायों में इसका प्रचलन आज भी है। कई सामाजिक संस्था के अनुसार भारत में केवल पहले और चौथे प्रकार का जेनिटल म्यूटिलेशन होता है।
डरावने हैं आंकड़े
यूनिसेफ के आंकड़ों के मुताबिक दुनिया भर में सालाना 20 करोड़ महिलाओं का जेनिटल म्यूटिलेशन होता है। इनमें आधे सिर्फ मिस्र, इथियोपिया और इंडोनेशिया में होते हैं। इनमें से करीब साढ़े चार करोड़ बच्चियां 14 से कम उम्र की होती हैं। इंडोनेशिया में आधी से ज्यादा बच्चियों का जेनिटल म्यूटिलेशन हो चुका है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार जेनिटल म्यूटिलेशन नाम पर जेनिटल ऑर्गन को नुकसान पहुंचाना घोर अपराध है, जिसे तत्काल प्रभाव से रोकना जरूरी है। संगठन के अनुसार विश्व में रोजाना 6 हजार लड़किया इस कुप्रथा की शिकार होती हैं। इस प्रथा के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अपना पहला निंदा प्रस्ताव पारित कर दिया है। आप से भी यह निवेदन है कि इस कुप्रथा का विरोध करें।