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2017 के कुछ बड़े और ऐतिहासिक कानूनी फैसले जिसने खूब बटोरीं सुर्खियां

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वैसे तो इस देश की अदालतों में हर रोज कुछ ना कुछ छोटे-बड़े फैसले सुनाये जाते हैं।  इनमें से सभी फैसले सभी के लिए मायने नहीं रखते पर कुछ फैसले ऐसे भी होते हैं जो सबके लिए बेहद ख़ास होते हैं…….पेश हैं 2017 में सुनाये गए कुछ ऐसे हीं अहम फैसले जो बनी रहीं सुर्खियां।

तीन तलाक पर सुप्रीमकोर्ट का फैसला   

22 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक के मुद्दे पर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए इसे खत्म कर दिया। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने बहुमत के निर्णय में मुस्लिम समाज में एक बार में तीन बार तलाक देने की प्रथा को निरस्त करते हुए अपनी व्यवस्था में इसे असंवैधानिक, गैरकानूनी और शून्य करार दिया। कोर्ट ने कहा कि तीन तलाक की यह प्रथा कुरान के मूल सिद्धांत के खिलाफ है। प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अपने 365 पेज के फैसले में कहा, ‘3:2 के बहुमत से दर्ज की गई अलग-अलग राय के मद्देनजर‘तलाक-ए-बिद्दत’’ तीन तलाक को निरस्त किया जाता है। प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर ने तीन तलाक की इस प्रथा पर छह महीने की रोक लगाने की हिमायत करते हुए सरकार से कहा कि वह इस संबंध में कानून बनाए जबकि न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति आर एफ नरिमन और न्यायमूर्ति उदय यू ललित ने इस प्रथा को संविधान का उल्लंघन करने वाला करार दिया। बहुमत के फैसले में कहा गया कि तीन तलाक सहित कोई भी प्रथा जो कुरान के सिद्धांतों के खिलाफ है, अस्वीकार्य है।

मौलिक अधिकार है निजता का अधिकार  

24 अगस्त को निजता के अधिकार के सवाल पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए इसे मौलिक अधिकार करार दिया। नौ जजों वाली सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार बताया। पीठ में मुख्य न्यायाधीश जे.एस. खेहर, जस्टिस जे. चेलमेश्वर, जस्टिस एस.ए. बोबडे, जस्टिस आर.के. अग्रवाल, जस्टिस आर.एफ़. नरीमन, जस्टिस ए.एम. सप्रे, जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर शामिल थे। पीठ ने कहा कि निजता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए जीने के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हिस्सा है। साथ हीं  संविधान पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के उन दो पुराने फ़ैसलों को ख़ारिज कर दिया जिनमें निजता को मौलिक अधिकार नहीं माना गया था। जुलाई में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि निजता का अधिकार संपूर्ण अधिकार नहीं है और इस पर राजसत्ता कुछ हद तक तर्कपूर्ण रोक लगा सकती है।

2 जी स्कैम  

21 दिसम्बर को दिल्ली की अदालत ने पूर्व दूरसंचार मंत्री ए. राजा और कनिमोड़ी समेत सभी 17 लोगों को 2 जी घोटाले में बरी कर दिया। 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाले के मामले के 17 आरोपियों में 14 व्यक्ति और तीन कंपनियां (रिलायंस टेलिकॉम, स्वान टेलिकॉम, यूनिटेक) शामिल थीं। 2जी घोटाला साल 2010 में तब सामने आया जब भारत के महालेखाकार और नियंत्रक (कैग) ने अपनी एक रिपोर्ट में साल 2008 में किए गए स्पेक्ट्रम आवंटन पर सवाल खड़े किए थे। इस घोटाले में कंपनियों को नीलामी की बजाए पहले आओ और पहले पाओ की नीति पर लाइसेंस दिए गए थे, जिसमें भारत के महालेखाकार और नियंत्रक के अनुसार सरकारी खजाने को अनुमानित एक लाख 76 हजार करोड़ रुपयों का नुक़सान हुआ था। हालांकि सीबीआई ने जो आरोप दाख़िल किया था उसमें लगभग 30 हज़ार करोड़ के नुकसान की बात कही थी। आरोप था कि अगर लाइसेंस नीलामी के आधार पर दिए जाते तो ख़जाने को कम से कम एक लाख 76 हज़ार करोड़ रुपए और हासिल हो सकते थे। हालांकि महालेखाकार के नुक़सान के आंकड़ों पर कई तरह के आरोप थे, लेकिन ये एक बड़ा राजनीतिक विवाद बन गया था और मामले पर देश के सर्वोच्च न्यायालय में याचिका भी दाखिल की गई थी।

आदर्श सोसायटी घोटाला

22 दिसम्बर को बॉम्बे हाई कोर्ट ने आदर्श सोसायटी घोटाला मामले में कांग्रेस नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण पर केस चलाने की अनुमति देने वाले राज्यपाल के आदेश को खारिज कर दिया। बता दें कि चव्हाण पर आदर्श सोसायटी में अपने रिश्तेदारों को दो फ्लैट देने की एवज में सोसायटी को अतिरिक्त एफएसआई (फ्लोर स्पेस इंडेक्स) देने का आरोप था। उनपर यह भी आरोप था कि जब वह राजस्व मंत्री थे, उन्होंने गैरकानूनी रूप से गैर सैनिकों को 40 प्रतिशत ज्यादा फ्लैट देने की मंजूरी दी थी। सीबीआई की एफआईआर में उनका नाम भी शामिल था, लेकिन दिसंबर 2013 में उस समय के राज्यपाल के. शंकरनारायण ने चव्हाण पर मुकदमा चलाने की मंजूरी देने से इनकार कर दिया था। हालांकि मार्च 2015 में हाई कोर्ट ने चव्हाण की यह मांग मानने से इनकार कर दिया था कि उनका नाम इस केस से निकाल दिया जाए क्योंकि राज्यपाल ने भी मंजूरी देने से मना कर दिया है। इसके बाद सीबीआई ने एक बार फिर राज्यपाल से संपर्क किया और फरवरी, 2016 में राज्यपाल ने चव्हाण पर मुकदमा चलाने की मंजूरी दी थी।

आवास घोटाला

28 दिसम्बर को दिल्ली की एक विशेष अदालत ने पूर्व केंद्रीय मंत्री पी के थुंगन को बरी कर दिया। थुंगन सरकारी आवास आवंटन से जुड़े भ्रष्टाचार के एक मामले में 21 साल से मुकदमे का सामना कर रहे थे। अदालत ने कहा कि सीबीआई यह साबित करने में नाकाम रही कि थुंगन ने अपने आधिकारिक पद का दुरूपयोग किया। अदालत ने थुंगन के अलावा 14 अन्य को भी बरी किया, जिसमें कई सरकारी अधिकारी शामिल थे। वहीं, मुकदमा चलने के दौरान तीन आरोपियों की मौत हो गई। इस बाबत विशेष सीबीआई जज कामिनी लाऊ ने कहा कि अभियोजन थुंगन पर लगे आरोप को साबित नहीं कर सका। गौरतलब है कि उन पर आरोप था कि उन्होंने शहरी विकास राज्य मंत्री रहने के दौरान अपने आधिकारिक पद का दुरुपयोग किया। अदालत ने 440 पन्नों के फैसले में कहा कि सीबीआई यह साबित करने में भी नाकाम रही कि उन्होंने आवास के बारे में जाली आवेदन फार्म का इस्तेमाल किया।

चारा घोटाला

23 दिसम्बर को रांची स्थित सीबीआई की विशेष अदालत ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राजद के मुखिया लालू प्रसाद यादव को चारा घोटाले से जुड़े एक और मामले में दोषी करार दिया। इस मामले में लालू के साथ हीं अन्य 15 लोगों को भी कोर्ट ने दोषी करार दिया। जबकि 7 आरोपियों को बरी कर दिया गया। इस मामले में पहला केस 27 जनवरी 1996 को दर्ज हुआ था। आरोप लगा कि इस रैकेट से पशुपालन विभाग के अधिकारी व ट्रेजरी ऑफिसर से लेकर सरकार के मंत्री और मुख्यमंत्री तक जुड़े थे। पशु के लिए खरीदे गए चारा का फर्जी बिल बनाकर ट्रेजरी को भेजा जाता था। ट्रेजरी के अफसर इस बात की बगैर जांच किए कि बिल सही है या नहीं या सच में चारा की खरीद हुई है या नहीं पैसे जारी कर देते थे। बता दें यह मामला देवघर कोषागार से 1992 से 1994 के दौरान फर्जी अलॉटमेंट लेटर और चालान पर 89 लाख की सरकारी राशि की गैर कानूनी निकासी से संबंधित है। चारा घोटाले से संबंधित लालू प्रसाद पर कुल छह मामले दर्ज हैं। एक केस की पटना और 5 की रांची में सुनवाई चल रही है। देवघर का यह मामला आरसी 68 (ए)-96 के तहत 1996 में दर्ज हुआ था। हालांकि मामले पर सजा का ऐलान होना अभी बाकी है जो 3 जनवरी को होगा।

कानून बदला

नाबालिग पत्नी के साथ शारीरिक संबंध बनाने को अपराध की श्रेणी में लाने के उच्चतम न्यायालय के एक फैसले के बाद दोषी को भारतीय दंड संहिता के तहत 10 साल कैद की सजा सुनाई जा सकती है या पॉक्सो कानून के तहत उम्रकैद तक की सजा सुनाई जा सकती है। आईपीसी की धारा 375 (बलात्कार की परिभाषा) के अपवाद दो को संशोधित करने के शीर्ष अदालत के ऐतिहासिक फैसले के बाद अब ऐसे पुरुषों पर मुकदमा चलेगा और कड़ी सजा दी जा सकती है। इससे पहले पति को 15 से 18 साल की पत्नी के साथ शारीरिक संबंध बनाने पर बलात्कार का मुकदमा चलने से छूट प्राप्त थी। अदालत ने दो दंडनीय कानूनों में असमानताओं को रेखांकित करते हुए कहा था कि आईपीसी की धारा 375 के अपवाद दो के तहत 15 से 18 साल की उम्र की पत्नी के साथ पुरुष द्वारा शारीरिक संबंध बनाना बलात्कार नहीं है लेकिन उसी समय पॉक्सो कानून की धारा छह के तहत यह दंडनीय अपराध है। न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि पॉक्सो कानून की धारा 42ए के तहत यदि आईपीसी और पॉक्सो के बीच कोई विसंगति है तो बाद वाला प्रावधान लागू होगा। पीठ ने कहा, आईपीसी की धारा 375 का अपवाद दो पॉक्सो के किसी प्रावधान में नहीं मिला जिसमें कहा गया है कि यदि पत्नी की उम्र 15 साल से कम नहीं है तो पुरुष द्वारा उसके साथ शारीरिक संबंध या आम सहमति से सेक्स संबंध बनाना अपराध नहीं है। उन्होंने कहा, इसलिए यह पॉक्सो और आईपीसी की प्रमुख विसंगति है।

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