पूर्णिया लोकसभा सीट से इंतेखाब आलम ने कांग्रेस आलाकमान के पास दावेदारी पेश कर महागठबंधन की और से पूर्व सीएम मांझी की दावेदारी के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी है। हाल ही में पूर्व सीएम मांझी ने इशारों ही इशारों में पूर्णिया से चुनाव लड़ने के संकेत देते हुए कहा था कि यहाँ 6 लाख से ज्यादा एससी वोट हैं इसका बहुत बड़ा फायदा हमें मिल सकता है।
लगभग तीन दशक से सीमांचल की राजनीति में सक्रिय इंतेखाब आलम की छवि समावेशी नेता की रही है। मुस्लिम होने के बावजूद इंतेखाब हिन्दू मतदाताओं के बीच भी काफी लोकप्रिय हैं। तुष्टिकरण की राजनीति से अलग इंतेखाब की छवि पूरे सीमांचल में मृदुभाषी नेता की है। वर्तमान में इंतेखाब आलम अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य हैं। बकौल इंतेखाब – “राहुल गांधी अगर मुझे पूर्णिया लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाते हैं तो निश्चित तौर पर यह सीट कांग्रेस के खाते में जायेगी”।
निर्णायक होंगे मुस्लिम मतदाता
2014 लोकसभा से अलग बदले सियासी समीकरण में इंतेखाब आलम कांग्रेस के लिए मुस्लिम वोटर को लामबंद करने में सक्षम हो सकते हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में जदयू और भाजपा ने अलग लग चुनाव लड़ा था इसका सीधा फायदा जदयू प्रत्याशी संतोष कुशवाहा को मिला था। इस बार जदयू और भाजपा साथ लड़ रहे हैं। पूर्णिया लोकसभा क्षेत्र में मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में रहते हैं। वैसे में एनडीए को मुस्लिम वोटरों को अपने पाले में लेने के लिए खासी मसक्कत करनी पड़ सकती है।
पूर्णिया पर तेजस्वी की भी नज़र
बहरहाल, कांग्रेस महागठबंधन में शामिल है। पूर्णिया लोकसभा सीट पर तेजस्वी की भी नज़र है अगले कुछ दिनों में ये साफ़ हो जाएगा कि पूर्णिया सीट किसके पाले में जायेगी। पूर्णिया की 60 प्रतिशत आबादी हिंदुओं की और 38 प्रतिशत मुस्लिमों की है, यहां यादव वोट भी बहुतायत में है,यादव और अल्पंख्यक मतों की गोलबंदी पर ही हार-जीत का फैसला निर्भर है, हालांकि, अतिपिछड़ी जातियां भी एक ताकत के तौर पर यहां स्थापित हैं जो किसी की भी पार्टी के गणित को फेल कर सकती है।
पप्पू यादव भी लगा रहे हैं एड़ी चोटी का जोर
सूत्रों की माने तो शरद यादव अगर राजद के सहयोग से मधेपुरा से चुनाव लड़ते हैं तब पप्पू यादव भी पूर्णिया से चुनाव लड़ने का मन बना सकते हैं। हालाँकि बीते दिनों पप्पू यादव ने महागठबंधन में शामिल होने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाया लगाया था इस बाबत पप्पू बिहार कांग्रेस अध्यक्ष मदन मोहन झा से भी मिले थे । लेकिन तेजस्वी यादव की न के बाद कांग्रेस ने भी पप्पू से किनारा कर लिया था। फिलवक्त पप्पू यादव की पत्नी रंजीत रंजन सुपौल से कांग्रेस की सांसद हैं । अंदरखाने खबर यह भी है कि रंजीत रंजन पप्पू यादव के लिए कांग्रेस आलाकमान से पैरवी कर रही हैं।
गौरतलब है की पप्पू यादव मधेपुरा से राजद के सांसद है दोबारा पप्पू को राजद में जगह मिलने की सम्भावना दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रही है वैसे में पप्पू यादव जाप के बैनर तले पूर्णिया या फिर मधेपुरा से चुनाव लड़ सकते हैं।
बीते समय में कांग्रेस का गढ़ था पूर्णिया
साल 1952 से 1971 तक यह क्षेत्र कांग्रेस का गढ़ माना जाता था। फणि गोपाल सेन यहां के पहले सांसद बने थे, उन्होंने 1962 तक इस क्षेत्र का लगातार प्रतिनिधित्व किया। 1971 में मो. ताहिर कांग्रेस की टिकट पर सांसद चुने गए, 1977 में जनता पार्टी की लहर में यह सीट कांग्रेस की झोली से छीन गई और लखनलाल कपूर यहां के गैर कांग्रेसी सांसद बने लेकिन 1980 में यह सीट फिर से कांग्रेस की झोली में चली गई और माधुरी सिंह यहां से एमपी बनीं, वो 1980 से 1989 तक यहां की सांसद रहीं, 1989 में जनता दल के टिकट पर मो. तस्लीमउद्दीन इस सीट से विजयी हुए तो 1996 में सपा की टिकट पर राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव यहां से एमपी बने, साल 1998 में जयकृष्ण मंडल ने पहली बार यहां भाजपा का परचम लहराया और सांसद बने, 1999 में यहां से राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव निर्दलीय चुनाव जीतकर संसद पहुंचे, साल 2004 से साल 2009 तक लगातार दो बार भाजपा से उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह ने यहां का प्रतिनिधित्व किया। साल 2014 में जदयू के टिकट पर संतोष कुशवाहा सांसद चुने गए