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केवल चेहरे नहीं, राजनीति का चरित्र बदलिए

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मुम्बई: कठुआ एवं उन्नाव की घटनाओं ने आम आदमी को झकझोर कर रख दिया है। कठुआ की घटना को कुछ लोगो ने सांप्रदायिक रंग देने की भी कोशिश कि और ‘हिन्दू राष्ट्रवादी’ शब्द का जम कर उपयोग हुआ। कुछ पत्रकार तो कुछ बुद्धिजीवियों ने बलात्कारियों और उनके समर्थकों को बार-बार इस अलंकार से सम्बोधित किया। शायद वो भूल गए कि इस देश में हिन्दू करोड़ो की संख्या में है, और पैदाइशी राष्ट्रवादी हैं, परन्तु उनमें से शायद ही कुछ लोग इस तरह की घटना का समर्थन करते हैं।

एक आठ साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म करने वाला ना तो हिन्दू होता है ना मुसलमान, वह तो एक वहशीं मनोरोगी होता है। यह समाज की जिम्मेवदारी है कि वो ऐसे मनोरोगियों को उनके अंजाम तक पहुचाये। भला कोई कैसे फूल जैसे बच्ची के साथ ऐसा कर सकता है? एक आठ साल की बच्ची का पिता होने के नाते मेरे लिए यह समझना अत्यंत कठिन है। उम्मीद है उनके माता-पिता को सम्पूर्ण न्याय मिलेगा।

उन्नाव की घटना हमारे राजनीतिक वर्ग के उसी चेहरे को दर्शाता है, जिससे हम सब अवगत तो हैं, परन्तु जिसे परिवर्तित करने के बजाय हम सब उसका एक हिस्सा बन कर रह गए हैं। अंग्रेजों के जाने के बाद भी हमारा देश शासक और शासितों में बटा हीं रह गया। विशेषाधिकार और विशेष सुविधाओं से लैस हमारे नेता हमे जाती-धर्म के नाम पर विभाजित कर इस देश का शोषण कर रहे हैं और हम शोषित उन्ही की जयजयकार भी कर रहे है।

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जैसे-जैसे 2019 के चुनाव नजदीक आ रहा है, भारत जाती और धर्म के नाम पर बंद होने लगा है,  साथ हीं हमारा दिमाग भी बंद होने लगा है। नेताओं से उनके काम का हिसाब मांगने की बजाय हम आपस में लड़ेंगे-मरेंगे और फिर नक्कारों को सत्ता की चाभी सौप देंगे। याद करने की कोशिश करें विकास के नाम पर चुनाव लड़ने और जितने वाले मोदीजी के मंत्रियो और पार्टी के लोगो से आखिरी बार कब हमने विकास की बात सुनी। कांग्रेस ने तो जाती-पाती के अलावे और कुछ जाना हीं कहा है। उनके नेता छोले-भटूरे खाकर उपवास कर रहे हैं या उपहास ये तो वो ही बता सकते है।

बहरहाल अगर आप वास्तव में उस मासूम में अपनी बेटी या बहन देखते हैं, तो व्यक्ति परिवर्तन के बजाय व्यवस्था परिवर्तन की आवाज़ उठाइये। केवल चेहरे मत बदलिए, राजनीति का चरित्र बदलिए। स्वच्छता दिमाग में लाइए देश खुद बखुद स्वक्छ हो जायेगा। अगर कोई नेता, नारी सुरक्षा, देश निर्माण, रोजगार, शिक्षा या स्वास्थ्य की जगह हिन्दू-मुस्लिम और अगड़े-पिछड़े की बात करे तो उन्हें वोट नहीं चोट दीजिये। उखाड़ फेकिये इन नेताओँ और इनके पार्टियों को, नहीं तो आज दुष्कर्म की शिकार बच्ची आपकी बेटी समान है, कल आपकी बेटी होगी।

(समाजिक सरोकार से जुड़े ये विचार लेखक के अपने हैं, जो इस पोर्टल पर अनकी विशेष अनुमति से प्रकाशित किये गए हैं)

रुपेश कुमार, मुम्बई

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